Friday, April 11, 2014

बातों में हम आयें क्यों , मन अपना भरमायें क्यों - डॉ. रेनू चंद्रा

बातों में हम आयें  क्यों
मन अपना भरमायें  क्यों

आखिर बात बनेगी ही
हम इतना घबराएँ क्यों

रात गयी तो बात गयी
सर धुनकर पछताएँ क्यों

मिलकर शिकवे दूर करें
मित्रों से कतराएँ क्यों

व्यंग हमें खलते हैं तो
औरों पर बरसाएँ क्यों

केवल उनकी खातिर ही
सारी सुख-सुविधाएं क्यों

दो ही सच्चे दोस्त भले
ज्यादा भीड़ जुटाएं क्यों

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