Monday, April 21, 2014

कटे पंख-वाले पंछी-सी तड़प उठी फिर याद पुरानी ! - प्रतीक मिश्र

कटे पंख-वाले पंछी-सी
तड़प उठी फिर याद  पुरानी !

घुमड़-घुमड़ आये अंतस में
आकुलता के घन कजरारे ,
सुधि के झितिज छोर पर दमके
क्षण-जीवी बेसुध उजियारे ,

फिर ज्यों का त्यों घुप अँधियारा
फिर अँधियारे की मनमानी !

चातक , मोर-पपीहे मचले
मचल-मचल के शान्त हो गये ,
कोलाहल-वाले बीते पल
जाने कब एकान्त हो गये ,

जाने कब से बने हुये हैं
एकाकी पल अवढर दानी !

यह क्या हुआ पीर को , उमड़ी
और नयन का नीर हो गई ,
सहमी ठिठकी और अचानक
जाने क्यों गंभीर हो गई ,

पीर कसक की बनी सहेली
और कसक हो गयी सयानी !

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