Monday, April 21, 2014

वो था पास बहुत अच्छा था दूर हुआ रोना क्या है ! - प्रोफे. राम स्वरुप 'सिन्दूर'

वो था पास बहुत अच्छा था
दूर हुआ रोना क्या है !
मैं उसका दीवाना हूँ , वो
भी मेरा दीवाना है !

ख़ुद अपने में खोये रहना
अब शुमार है आदत में ,
जो सब कुछ दे गया मुझे
मेरा सब-कुछ ले भागा है !


ठुकरा दे या गले लगा ले
ये तो उसकी मर्जी है ,
वक़्त मुझे सर माथे लेगा
इतना मुझे भरोसा है !

रोना मज़बूरी हो तो भी
आँखन गीली हो मेरी ,
इस पथरायी सूरत पर भी
वो अरसे से रीझा है !

मेरी पूनम-पूनम रातें
जिस ने स्याह अँधेरी की
उसको क्या मालूम कि वो-ही
इन आँखों का तारा है !

जिस का नाम शहर ऊपर था
अब कोई पहचान नहीं ,
घर में भी फ़रार कैदी-सा
ख़ुद में छिपता-फिरता है !

उस को क्या खोया है
मैंने अपना भी वजूद खोया
दुनियां के नक़्शे से मेरा
नामो-निशां मिट गया है !

दिल टूटा तो टूटा तू ने
आमद वाले शेर कहे ,
कर यकीन 'सिन्दूर' कि तू भी
शायर बड़ा हो गया है !


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