Saturday, April 12, 2014

हम पत्ते तूफ़ान के ! - गोपालदास 'नीरज'

हम पत्ते तूफ़ान के !
हम किस को क्या दे-लें, हम तो बंजारे वीरान के !

ऊपर उठते, नीचे गिरते,
आँधी-संग भटकते-फिरते,
जिस पर लंगर नहीं, मुसाफ़िर हम ऐसे जलयान के !

रमता जोगी, बहता पानी,
अपनी इतनी सिर्फ़ कहानी,
पल-भर के मेहमान, कि जैसे बुझते दिये विहान के !

कुछ पीड़ा, कुछ आंसू खारे,
बस यह पूंजी पास हमारे,
ताजमहल में देखे हमने पत्थर कब्रिस्तान के !

सपने हम न किसी काजल के,
अपने हम न किसी आँचल के,
नीलामी पर चढ़े खिलौने, काग़ज की दूकान के !

जात अजानी, नाम अजाना,
कहीं न अपना ठौर-ठिकाना,
बिना कुटी के सन्यासी हम, मकी बगैर मकान के !

जुड़े नुमायश, लगे कि मेले,
रहे यहाँ हम सदा अकेले,
कौन हार में जड़े हमें, हम मानिक दुःख की खान के !

दिल शोला, आँखें शबनम हैं,
हम से मत पूछो, क्या हम हैं ?
मज़हब अपना प्यार, जन्म से आशिक़ हम इन्शान के !

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