Friday, April 25, 2014

और तुम बांसुरी बजाते रहे - निर्मला पुतुल

और तुम बांसुरी बजाते रहे

कोई आया , कुछ उठा कर ले गया
और तुम बांसुरी बजाते रहे
मैं चुप रही

बस्ती में आग लगी
सब बचाने दौड़े
एक तुम थे कि
बांसुरी बजाते रहे
बावजूद मैं चुप रही

घर के सामने से जुलूस गुजरी
जुलूस के शोर में तुम्हारी
बांसुरी की आवाज दब गयी
फिर भी तुम बांसुरी बजाते रहे
और मैं चुपचाप देखती रह गयी

इस बार मैं चुप नहीं रहूंगी
छीन कर तोड़ दूंगी तुम्हारी बांसुरी
कि देखो कि इस बार
वो मुझे उठाने आ रहे हैं

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